बोले चिकित्सक मिर्गी जैसी बीमारी का ईलाज है सम्भव

बोले चिकित्सक मिर्गी जैसी बीमारी का ईलाज है सम्भव

मानसिक स्वास्थ्य का रखें ख्याल, समस्याओं का ढूंढें समाधान...

वाराणसी/भदैनी मिरर। मिर्गी यानी एपिलेप्सी एक तंत्रिका सम्बन्धी विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है, जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते हैं। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है। मिर्गी की समस्या पूरी तरह से नरवर सिस्टम (नस सम्बन्धी) की समस्या है। इस बीमारी में नरवर सिस्टम हाइपर एक्ससाइटेड स्टेट में रहता है। जब करेंट का फ्लो ज्यादा होने लगता है ब्रेन के सेल्स में तो वह प्रेजेंट करता है मिर्गी के रुप में। जिसको दवाओं से ठीक किया जा सकता है। इस बीमारी के इलाज में जो दवाई चलती है थोड़ी लम्बी जरूर चलती है लेकिन बीमारी पूरी तरह से ठीक भी हो जाता है। ऐसा कहना है मड़ुवाडीह चौराहा स्थित आशा न्यूरो सैक्रेट्रिक क्लिनिक के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. आशीष कुमार गुप्ता का।

मिथ्यात्मक है भूत-प्रेत की बातें

डॉ आशीष बताते हैं कि मिर्गी को लेकर आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में भूत-प्रेत जैसी भ्रांतियां फैली हुई हैं। उन्होंने बताया कि मिर्गी बीमारी है कोई भूत-प्रेत की बाधा नहीं और यह बीमारी 2 से 3 साल के अंदर पूरी तरह ठीक हो जाती है। इसलिए मिर्गी का लक्षण दिखते ही चिकित्सक की सलाह ओर इलाज शुरू कर देना चाहिए। कई बार मिर्गी की लम्बी दवाई चलाई जाती है। इसका कारण है उचित समय से इलाज शुरु नहीं कराना। यह बीमारी जटिल होने लगती है ।और बाद में दवाओं का डोज भी ज्यादा करना पड़ता है ,इसलिए दवाई लम्बी चलती है।


इतने प्रतिशत लोग होते हैं प्रभावित
 
डॉ आशीष बताते हैं कि इंडिया में लगभग मिर्गी से 3 से 4 प्रतिशत लोग मिर्गी से प्रभावित है। इसका एक कारण यह भी है कि मिर्गी वंशानुगत होती है और वंशानुगत मिर्गी का इलाज जटिल होता है। लेकिन सही समय और दवाई से ठीक होता है। यह जरूरी नहीं कि माता-पिता को मिर्गी की बीमारी है तो बच्चों को हो ही, लेकिन अगली पीढ़ी में मिर्गी होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती है।

 मानसिक स्वास्थ्य का भी रखें ख्याल

आज के समय मे लगतार डिप्रेशन के शिकार हो रहे युवाओ के कारण आत्महत्याएं भी बढ़ गई है। इस सन्दर्भ में डॉ आशीष कहते हैं कि  लगातार भागदौड़ वाली लाइफस्टाइल होने के कारण खुद के लिए लोगो के पास समय नहीं है। लोग अपने शारीरिक के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का उतना ध्यान नहीं दे पाते है, कही न कही वह अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होने लगता है। युवा वर्ग को पढ़ाई के साथ साथ भविष्य बनाने का दबाव होता है, साथ ही टिन एज में बच्चे लगातार तनाव में रहते है। तनाव का यदि सही समय पर समाधान न किया जाए तो धीरे-धीरे डिप्रेशन का रुप लेती है जो आत्महत्या का एक कारण बन सकती है।

मोबाइल का सीमित समय तक ही करें उपयोग

डॉ आशीष बताते हैं कि लॉकडाउन के बाद हर माता-पिता की मजबूरी है कि उन्हें अपने बच्चों को मोबाइल देना है। लेकिन बच्चों को मोबाइल देने की एक समय सीमा तय करनी होगी। कई बार बच्चे काफी देर रात तक मोबाइल का इस्तेमाल करते है जिससे उनका तनाव और भी ज्यादा बढ़ जाता है।



 समाधान ढूंढे न कि तनाव ले

डॉ आशीष कहते हैं कि जिस तरह शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते है, वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य का भी ख्याल रखें। आपके अंदर कोई स्वाभाव-व्यवहार में कोई अंतर आता है या तनावग्रस्त महसूस कर रहे है तो उसे भी एक समस्या के रुप में ले और उसका समाधान खोजे। न कि तनाव ले ।

अस्पताल में यह सुविधाएं हैं उपलब्ध

आशा न्यूरो सैकेट्री क्लिनिक में मानसिक रोगियों के भर्ती होने की व्यवस्था के साथ ही ईईजी, ईसीजी, कॉउंसिल और साइकोथेरेपी की सुविधा भी उपलब्ध है।